ग्वालवंश

क्षत्रियों का प्रधान वंश यादव वंश है...यादव-कुल की एक अति-पवित्र शाखा ग्वालवंश है जिसका प्रतिनिधित्व नन्द बाबा करते थे .. बहुत से अज्ञानी दोनों को अलग -अलग वंश का बताते हैं....मूर्खों को ये मालूम नहीं की नन्द बाबा और कृष्ण के पिता वासुदेव रिश्ते में भाई थे जिसे हरिवंश पुराण में पूर्णतः स्पष्ट किया गया है....भागवत पुराण में भी इस बात का जिक्र है.....ग्वालवंश में ही समस्त यादवों की कुल-देवी माँ विंध्यवासिनी देवी ने जन्म लिया था..भागवत पुराण के अनुसार तो भगवान् श्रीकृष्ण के गोकुल प्रवास के दौरान सभी देवी-देवताओं ने ग्वालों के रूप में अंशावतार लिया था...इसीलिए ग्वालवंश को अति-पवित्र माना जाता है.
कुछ महामूर्ख यादव और अहीर को भी अलग बताते है..अहि का अर्थ संस्कृत में सर्प होता है और अहीर का मतलब सर्प दमन होता है...ऋग वेद में राजा यदु का वर्णन है..इसीलिए उनके वंशज यादव-वैदिक क्षत्रिय है...ऋग वेद में महाराज यदु को वन में एक सांप को मारने की वजह से 'अहीर' की संज्ञा दी गयी है..बाद में कालिया नाग के दमन के पश्चात् श्रीकृष्ण को भी अहीर कहा गया .
जय श्री कृष्ण
जय ग्वाल जय गोपाल 

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