"राधे राधे"
(((( "चित्रा सखी" ))))
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राधाजी की अष्ट सखिओं में एक सखी हैं, चित्रा सखी
.
बरसाने की बड़ी परिकर्मा मार्ग में चिक्सोली गाँव में इनका मंदिर है |
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चित्रा सखी बचपन से योगिनी वेदान्त की ज्ञाता थी और साथ ही एक बहुत अच्छी चित्रकार थीं किसी को भी एक बार देखकर उसका चित्र बना लेना उनके लिए बहुत ही सरल बात थी
.
इसी बात की उनकी ख्याति भी थी दूर दूर के गाँव तक थी |
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एक बार राधाजी के भाई श्री दामा ने अपने मित्र कन्हैया से उनका चित्र माँगा |
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कन्हैया ने कह दिया कल दे दूंगा और अपने घर आकर मैया से कहने लगे की माँ मेरा चित्र बनवा दो |
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माँ ने कह दिया की बनवा देंगे और अपने काम में लग गयी थोड़ी देर में फिर आकर बोले मैया बनवा दो ना माँ ने झुंझला के कहा क्यों जिद कर रहा है बनवा देंगे अभी कहाँ से बनवा दूँ |
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इतने में नन्द बावा आ गए वो बावा के पीछे लग गए कहने लगा बावा मुझे अपना चित्र बनवाना है |
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बावा ने कहा- अच्छा ! चल बनवाते हैं, बाहर आकर अपने किसी सहयोगी से कहा कि जाकर किसी चित्र बनाने वाले को लेकर आयो |
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सहयोगी ने कहा -कि अच्छा लाता हूँ | वो ढूंढते ढूंढते चित्रा सखी के पास पहुँच गया और उससे बोला हमें नन्द बाबा ने भेजा है उनको अपने लाला कि तस्वीर बनवानी है.
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वो बोली तो लाला को यहाँ ले आओ मैं तो कहीं जाती नहीं
.
सहयोगी ने कहा - कि हम तुम्हे बाबा से बहुत सा इनाम दिलवाएंगे तुम्हे वहीँ चलना पड़ेगा |
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इस बात से वो नाराज़ हो गयी बोली हम इनाम के लिए तस्वीर नहीं बनाते हैं, बस तस्वीर बना के हमारे मन को सुकून मिलता है इसलिए बनाते हैं.
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पर ठाकुरजी के कुछ प्रेरणा ऐसी हुई वो ना ना करते हुए चलने के लिए तैयार हो गयी |
.
और जब नन्द गाँव पहुंची तो लाला को देखा और उस रूप को देखती ही रह गयी उस योगिनी को अपना योग हिलता सा लगा वो उस रूप पर मोहित हो गयी |
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बाबा से बोली हम कल बना कर दे देंगे और वहाँ से आ गयी |
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अब वो जो चित्र बनाएं उस रूप के आगे वो उन्हें फीका लगे फिर मिटा दें फिर बनाएं पर चित्र बने ही नहीं.
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वो चंचल चितवन उनके मन पर टिक ही नहीं रही थी. बार-बार बदल जाती थी और चित्र उन्हें दूसरा लगने लगता था |
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जब बहुत परेशान हुई तो उन्होंने ध्यान लगाने की कोशिश की अब ध्यान भी नहीं लग रहा उनकी परेशानी को नारद जी बड़ी देर से देख रहे थे |
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वो उनके नज़दीक आये और बोले पुत्री क्यों परेशान हो तो चित्रा सखी ने अपने परेशानी बतायी | और देवर्षि से उसका समाधान पूछा |
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तो नारद जी ने कहा -कि कान्हा का चित्र श्री जी की साधना किये बिना नहीं बन सकता तुम उनकी आराधना करो और जब वो तुम्हे आशीर्वाद देंगी तभी तुम उनका चित्र बना सकती हो तभी कान्हा की चंचल चितवन तुम्हारे मन में ठहर पाएगी |
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और चित्रा जी ने राधा जी को आरधना से प्रसन्न किया और उनसे चित्र बनाए की सामर्थ मांगी |
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श्रीजी ने उनकी साधना से प्रसन्न होकर उन्हें अपनी अष्ट सखी में शामिल किया और उन्हें ठाकुरजी का चित्र बनाने का आशीर्वाद प्रदान किया |
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तब जाकर चित्रा सखी ठाकुरजी का चित्र बना सकीं |
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((((((( जय जय श्री राधे )))))))
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राधाजी की अष्ट सखिओं में एक सखी हैं, चित्रा सखी
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बरसाने की बड़ी परिकर्मा मार्ग में चिक्सोली गाँव में इनका मंदिर है |
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चित्रा सखी बचपन से योगिनी वेदान्त की ज्ञाता थी और साथ ही एक बहुत अच्छी चित्रकार थीं किसी को भी एक बार देखकर उसका चित्र बना लेना उनके लिए बहुत ही सरल बात थी
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इसी बात की उनकी ख्याति भी थी दूर दूर के गाँव तक थी |
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एक बार राधाजी के भाई श्री दामा ने अपने मित्र कन्हैया से उनका चित्र माँगा |
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कन्हैया ने कह दिया कल दे दूंगा और अपने घर आकर मैया से कहने लगे की माँ मेरा चित्र बनवा दो |
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माँ ने कह दिया की बनवा देंगे और अपने काम में लग गयी थोड़ी देर में फिर आकर बोले मैया बनवा दो ना माँ ने झुंझला के कहा क्यों जिद कर रहा है बनवा देंगे अभी कहाँ से बनवा दूँ |
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इतने में नन्द बावा आ गए वो बावा के पीछे लग गए कहने लगा बावा मुझे अपना चित्र बनवाना है |
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बावा ने कहा- अच्छा ! चल बनवाते हैं, बाहर आकर अपने किसी सहयोगी से कहा कि जाकर किसी चित्र बनाने वाले को लेकर आयो |
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सहयोगी ने कहा -कि अच्छा लाता हूँ | वो ढूंढते ढूंढते चित्रा सखी के पास पहुँच गया और उससे बोला हमें नन्द बाबा ने भेजा है उनको अपने लाला कि तस्वीर बनवानी है.
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वो बोली तो लाला को यहाँ ले आओ मैं तो कहीं जाती नहीं
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सहयोगी ने कहा - कि हम तुम्हे बाबा से बहुत सा इनाम दिलवाएंगे तुम्हे वहीँ चलना पड़ेगा |
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इस बात से वो नाराज़ हो गयी बोली हम इनाम के लिए तस्वीर नहीं बनाते हैं, बस तस्वीर बना के हमारे मन को सुकून मिलता है इसलिए बनाते हैं.
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पर ठाकुरजी के कुछ प्रेरणा ऐसी हुई वो ना ना करते हुए चलने के लिए तैयार हो गयी |
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और जब नन्द गाँव पहुंची तो लाला को देखा और उस रूप को देखती ही रह गयी उस योगिनी को अपना योग हिलता सा लगा वो उस रूप पर मोहित हो गयी |
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बाबा से बोली हम कल बना कर दे देंगे और वहाँ से आ गयी |
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अब वो जो चित्र बनाएं उस रूप के आगे वो उन्हें फीका लगे फिर मिटा दें फिर बनाएं पर चित्र बने ही नहीं.
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वो चंचल चितवन उनके मन पर टिक ही नहीं रही थी. बार-बार बदल जाती थी और चित्र उन्हें दूसरा लगने लगता था |
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जब बहुत परेशान हुई तो उन्होंने ध्यान लगाने की कोशिश की अब ध्यान भी नहीं लग रहा उनकी परेशानी को नारद जी बड़ी देर से देख रहे थे |
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वो उनके नज़दीक आये और बोले पुत्री क्यों परेशान हो तो चित्रा सखी ने अपने परेशानी बतायी | और देवर्षि से उसका समाधान पूछा |
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तो नारद जी ने कहा -कि कान्हा का चित्र श्री जी की साधना किये बिना नहीं बन सकता तुम उनकी आराधना करो और जब वो तुम्हे आशीर्वाद देंगी तभी तुम उनका चित्र बना सकती हो तभी कान्हा की चंचल चितवन तुम्हारे मन में ठहर पाएगी |
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और चित्रा जी ने राधा जी को आरधना से प्रसन्न किया और उनसे चित्र बनाए की सामर्थ मांगी |
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श्रीजी ने उनकी साधना से प्रसन्न होकर उन्हें अपनी अष्ट सखी में शामिल किया और उन्हें ठाकुरजी का चित्र बनाने का आशीर्वाद प्रदान किया |
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तब जाकर चित्रा सखी ठाकुरजी का चित्र बना सकीं |
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((((((( जय जय श्री राधे )))))))
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