श्री कृष्ण के मित्र

श्री कृष्ण ने ग्वाल वालो को अपना सखा माना हे  भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से दोस्ती के एक नए मायने मिलते हैं जिसे समझकर आप दोस्ती को समझ सकते हैं. 
कृष्ण और सुदामा जी की मित्रता जग जाहिर है मगर इनके अतिरिक्त भी श्री कृष्ण जी के हृदय प्रिय और भी खास मित्र थे 
1=अर्जुन
2=द्रौपदी
3=अक्रूर
4=सात्यकि
5=सुदामा ।

अमूमन इतिहासकार कृष्ण और द्रौपदी के रिश्ते को या तो भाई-बहन का नाम देते हैं या फिर सोचते हैं कि कृष्ण और द्रौपदी को विवाह बंधन में बंधना चाहिए था। लेकिन दोनों के बीच की सच्ची एवं पावन मित्रता को हर कोई नहीं समझता। स्त्री और पुरुष भी सच्चे और केवल मित्र ही हो सकते हैं, इस बात को दर्शाती है कृष्ण-द्रौपदी की मित्रता। 

द्रौपदी का जब वस्त्र हरण हो रहा था तो अपनी लाज बचाने के लिए वो कुरु वंश की उस सभा में एकएक कर सबके पास गई। 

कोई सहायता को तैयार न हुआ तो थकहार वो अपने मित्र कृष्ण को पुकारने लगी और कृष्ण ने उनकी लाज बचा ली।

कहा गया है ,
 'काह करे बेरी प्रबल जब सहाय यदुवीर/ दस हजार गज बल थको, घटो न दस गज चीर.......

 यानि 'दस हज़ार हाथी का बल रखने वाला दुःशासन थक गया पर साड़ी का अंत नहीं हुआ।'

मानव जाति के इतिहास में 'कृष्ण' और 'कृष्णा' की मित्रता स्त्री और पुरुष के संबंध की सबसे पावन मिसाल है।

स्त्री और पुरुष के संबंध को इस रूप में सोचने, देखने और जीने का ये चिंतन जो योगेश्वर श्री कृष्ण ने दिया था.....कोई दे सका है आजतक? 
(साभार पोस्ट)

मित्रता एक व्यवहार हैं व्यापार नहीं, रिश्ते, नाते परिवार की दुनिया के साथ-साथ मित्रता का अपना एक अलग ही अंदाज है।
भगवान श्री कृष्ण की मित्रता इतिहास के पन्नों में हमेशा अमिट रहेंगी, 
मित्रता दिवस पर हार्दिक बधाई शुभकामनाएं।

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