ग्वालवंश

!!ग्वालवंश!!  (संसार का सबसे पवित्र वंश है जिसमे स्वयं भगवान विष्णु बाल रूप में कृष्णा बनकर अवतरित हुऐ  )

व्रज रज उड़ती देख कर मत कोई करजो ओट,
व्रज रज उड़े मस्तक लगे गिरे पाप की पोत"

जिन देवताओ को खबर पड़ गयी थी की भगवान विष्णु वाल रूप में कृष्णा बन कर भगवान लीलाधर पुर्षोतम पधारने वाले है ग्वालवंश मे लीलाये करने तो वो सब  व्रज में कोई ग्वाला बन कर जन्म ले लिया, कोई गोपी , कोई गईया , कोई मोर , कोई तोता, इत्यादि सभी पशु पक्षी बन व्रज में भगवान के आने से पहले ही व्रज मंडल को सुन्दर बना दिया।

कुछ देवता पीछे रह गए वो ब्रह्माजी के पास आये और वो देवता ब्रह्माजी से झगड़ा करने लगे की

"ब्रह्माजी ! आप ने हमको व्रज मे क्यों नही भेजा?
जब भगवान बाल कृष्ण लाल बन कर ठाकुर नारायण जहा इतनी सुन्दर-सुन्दर लीलाये करने के लिए पधारे है, आप ने हमको व्रज मे क्यों नही भेजा आप हम को भी व्रज में भेजिए"।

ब्रह्मा जी बोले :- "देखो भाई ! व्रज में जितने लोगो को भेजना था उतनों को भेज दिया अब व्रज में जगह खाली नही है।"

देवता बोले :- "महाराज ! 'आप हमे ग्वाला ही बना दो।"

ब्रह्मा जी बोले :- "जितने लोगो को ग्वाला बनाना था उतनों को बना दिया अब ग्वालो की जगह भी खाली नही है।"

देवता बोले :- "महाराज ! ग्वाला नही बना सकते तो 'हम को गोपी बना दो।"

ब्रह्मा जी बोले :- "गोपियाँ भी जितनी बनानी थी उतनी बना दी जब ( रास ) होगा तो हजारो आ जाएगी इसलिए गोपियो की भी जगह खाली नही है।"

देवता बोले :- "गोपी नही बना सकते , ग्वाला नही बना सकते तो कोई बात नही आप हमे गईया ही बना दो।"

ब्रह्मा जी बोले की :- "गईया भी खूब बना दी है।( एक अकेले नन्द बाबा के पास 9 लाख गाये है ) और , सो , दो सो , से कम तो किसी के पास है ही नही।

अब तुम को भी गाय बना दिया तो व्रज पूरा गो-शाला ही बन जायेगा इसलिए गाय भी जितनी बनानी थी बना दी अब गाय की भी जगह खाली नही है।"

देवता बोले :- "अच्छा महाराज ! 'गाय नही बना सकते तो मोर ही बना दो नाच नाच कर ठाकुर को रिझाया करेंगे।"

ब्रह्मा जी बोले :- "मोर भी खूब बना दिये इतने मोर बना दिये की व्रज में समाही नही रहे है इसलिए उनके लिए एक अलग से मोर कुट्टी बनानी पड़ी इसलिए मोर की भी जगह खाली नही है।"

देवता बोले :- "अच्छा महाराज ! 'मोर नही बना सकते तो, कोई तोता ,मैना , चिड़िया , कबूतर , कुछ भी बना दो।"

ब्रह्माजी बोले :- "वो भी खूब बना दिए पुरे पेड़ , भरे हुए है।"

देवता बोले :- "अच्छा महाराज ! 'कुछ नही तो , बंदर ही बना दो।"

ब्रह्मा जी बोले :- "बंदर भी खूब बना दिये-

(अगर आप का चश्मा कोई बंदर ले जाये तो भोग रख कर हाथ जोड़ना जय हो देवता आप जो भी है कृप्या भोग लगाये….वो आप का चश्मा-पर्स कर वापिस लोटा देंगे )
तो ब्रहमाजी बोले बंदर भी खूब बना दिये बंदर की भी जगह खाली नही है।"

देवता बोले :- "अच्छा महाराज ! बंदर नही बना सकते तो गधा ही बना दो ,क्यों की गधा भी ठाकुरजी के काम आता है।"

( जब ठाकुर जी होली की लीला करते है जब ग्वालियो को गधो पर बिठा कर दोड़ाते है।)
इसलिये देवता कहते है की क्या पता हमारे ऊपर कोई भक्त बैठे और ठाकुर जी अपने हाथो से थप्पकी दे कर रवाना करे उसमे भी फायदा है।"

ब्रह्मा जी बोले :- "गधे भी बहुत बना दिये वो भी जगह खाली नही है।"
देवता बोले :- "अच्छा महाराज ! गधा नही बना सकते तो कोई पेड़ -पोधा , लता-पता ही बना दो।"

ब्रह्मा जी बोले :- "पेड़- पोधा, लता-पता मेने जितने बनाने थे सब बना दिये , इतने बना दिए की सूर्य की किरने भी बड़ी कठिनाई से धरती को स्पर्श करती है।
और कितने लता- पता बनाऊ ?"

देवता बोले :- "महाराज ! कोइ तो जगह दो हम को, कैसे भी करके व्रज में तो भेजो।"
ब्रह्मा जी बोले :- "कोई जगह खाली नही है।"

तब देवताओ ने हाथ जोड़कर ब्रह्माजी से कहा :-
"महाराज ! आप हमे कुछ नही बना सकते तो , अगर हम कोई जगह अपने लिए ढूंढ़ के ले आये तो आप हम को ब्रज में भेज दोगे"

ब्रह्मा जी बोले :- "हाँ तुम अपने लिए कोई जगह ढूंढ़ के ले आओगे तो मैं तुम्हे व्रज में भेज दूंगा।"

देवताओ को झट से याद आया की रेती तो कितनी भी हो सकती है …

सभी देवता ब्रह्माजी से बोले :-
"अच्छा महाराज ! गोपी-ग्वाला ,पशु-पक्षी पेड़-पोधा , लता-पता , कुछ ना बनाओ तो हम को
( व्रज की रज ही ) बना दो वो तो कितनी भी हो सकती है।
और कुछ नही तो बाल कृष्ण लाल के चरण पड़ने से ही हमारा कल्याण हो जायेगा हम को व्रज में रेत बनना भी मंजूर है...।"

" इसलिए व्रज की रेत भी सामान्य नही है वो रज भी देवी देवता ऋषि मुनि इत्यादि है,,

मोर जो बनाओ तौ, बनाओ श्री वृंदावन कौ,
नाच-नाच चहक-चहक, तुम्ही कौ रिझाओगी।

बन्दर बनाओ तौ, बनाओ श्री वृंदावन कौ,
कूद-कूद फांद-फांद, वृक्ष झूलन दिखओगी।

भिखछुक बनाओ तौ, बनाओ बृज मंडल कौ,
क्योंकी... टूक हरी भक्तन सौ, मांग-मांग खाऊंगी।

भृंगी कौ करों तौ करो कालिंद्री
साभार 

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